जनजातीय समाज में परंपरागत संस्कार-विवाह परंपरा
डॉ. गणेश लाल निनामा
, डॉ. योगिता निनामा
दापा, नोतरा, वाणा, लगन, पीठी, नातरा, भराड़ी ।
सार
विवाह वर्षों से चली आ रही एक विशेष सामाजिक परंपरा है। विवाह संस्कार हर समाज में एक परंपरागत तरीके से किया जाता है, जिसमें दो अलग-अलग गोत्र के स्त्री पुरुष को पूरे जीवन भर साथ निभाने के लिए अनेक रस्मों से गुजरना पड़ता है तथा सभी परिजन, मित्र व सगे-संबंधी वर-वधू को आशीर्वाद देते हैं। इसी तरह आदिवासी समाज में भी विवाह पूरे रस्मों-रिवाज से सम्पन्न होता है। आदिवासी समाज में वैवाहिक जीवन की शुरुआत प्रकृति प्रदत्त संसाधनों से संपन्न होती है, जैसे घर की गोबर से लिपाई, ढाक के पत्तों से बने पत्तल-दोना, हल्दी को गर्म तेल में घोलकर भराड़ी माता बनाना व सालर,आम, बांस की टहनियों एवं आम के पत्तों आदि से मंडप तैयार किया जाता है। वैवाहिक रस्म वर-वधू के चुनाव से शुरू होकर दुल्हन की विदाई तक होती है।
"जनजातीय समाज में परंपरागत संस्कार-विवाह परंपरा", IJNRD - INTERNATIONAL JOURNAL OF NOVEL RESEARCH AND DEVELOPMENT (www.IJNRD.org), ISSN:2456-4184, Vol.9, Issue 10, page no.c155-c159, October-2024, Available :https://ijnrd.org/papers/IJNRD2410224.pdf
Volume 9
Issue 10,
October-2024
Pages : c155-c159
Paper Reg. ID: IJNRD_301386
Published Paper Id: IJNRD2410224
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Research Area: Social Science All
Country: DUNGARPUR, RAJASTHAN, India
ISSN: 2456-4184 | IMPACT FACTOR: 8.76 Calculated By Google Scholar | ESTD YEAR: 2016
An International Scholarly Open Access Journal, Peer-Reviewed, Refereed Journal Impact Factor 8.76 Calculate by Google Scholar and Semantic Scholar | AI-Powered Research Tool, Multidisciplinary, Monthly, Multilanguage Journal Indexing in All Major Database & Metadata, Citation Generator
Publisher: IJNRD (IJ Publication) Janvi Wave