Characteristics of metaphors represented in the metaphors of ancient times
Dr, Mukeshkumar Gordhanbhai Chauhan
नाट्यशास्त्रीय ग्रन्थों में प्राप्त उल्लेखों से ज्ञात होता है कि आचार्य भरत के पूर्व भी नाट्याचार्यो की एक परम्परा विद्यमान रही है। आचार्य भरत ने स्वयं नाट्यशास्त्र में नाट्योत्पत्ति एवं नाट्यप्रयोग के प्रसङ्ग में ब्रह्मा, शिव, पार्वती स्वाति नारद, कोहल, वात्स्यायन, शाण्डिल्य, धूर्तिल (दत्तिल) करणों एवं अन्य प्रसंगों में कश्यप, बृहस्पति, नखकुट्ट अश्मकट्ट, बादरायण, शातिकर्णी आदि आचार्यों का नाट्यशास्त्रप्रणेता एवं नाट्याचार्य के रूप में उल्लेख किया है। आधुनिक संस्कृत नाटक ग्रन्थों में आचार्यों के द्वारा लिखे गये संस्कृत नाट्यग्रन्थों के आधार पर नाट्यशास्त्री सिद्धान्तग्रन्थों में रूपक लक्षण की परम्परा विशेषताएँ समय के अनुसार प्राप्त नाट्यशास्त्रीय ग्रन्थों के आधार पर ग्रन्थ का संक्षिप्त परिचय और नाटक के लक्षणों के प्रस्तुत करने का प्रयास किया है जो कुछ इस प्रकार है।
"Characteristics of metaphors represented in the metaphors of ancient times", IJNRD - INTERNATIONAL JOURNAL OF NOVEL RESEARCH AND DEVELOPMENT (www.IJNRD.org), ISSN:2456-4184, Vol.7, Issue 3, page no.893-898, March-2022, Available :https://ijnrd.org/papers/IJNRD2203111.pdf
Volume 7
Issue 3,
March-2022
Pages : 893-898
Paper Reg. ID: IJNRD_180764
Published Paper Id: IJNRD2203111
Downloads: 000118802
Research Area: Arts
Country: RAJKOT, Gujarat, India
ISSN: 2456-4184 | IMPACT FACTOR: 8.76 Calculated By Google Scholar | ESTD YEAR: 2016
An International Scholarly Open Access Journal, Peer-Reviewed, Refereed Journal Impact Factor 8.76 Calculate by Google Scholar and Semantic Scholar | AI-Powered Research Tool, Multidisciplinary, Monthly, Multilanguage Journal Indexing in All Major Database & Metadata, Citation Generator
Publisher: IJNRD (IJ Publication) Janvi Wave