INTERNATIONAL JOURNAL OF NOVEL RESEARCH AND DEVELOPMENT International Peer Reviewed & Refereed Journals, Open Access Journal ISSN Approved Journal No: 2456-4184 | Impact factor: 8.76 | ESTD Year: 2016
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संत शिरोमणि गुरु नानक देव जी की सामाजिक समरसता
डॉ० रमेश कुमार
सहायक प्रोफेसर हिंदी
शहीद उधमसिंह राजकीय महाविद्यालय
मटक माजरी, इंद्री (करनाल)
Email-rameshkumar94672@gmail.com
सारांश-
युग प्रवर्तक गुरु नानक ने अपने क्रांति दृष्टा व्यक्तित्व के बल पर युग-धर्म को प्रभावित किया था| उनके व्यक्तित्व में मौलिक चिंतन महान सामाजिक निर्माता, प्रगतिशील धर्मगुरु और मानवतावादी कवि के समस्त गुण विद्यमान थे|गुरु नानक के कृतित्व का मूल्यांकन तीन रूपों में किया जा सकता है- लोक नायक के रूप में, आध्यात्मिक गुरु के रूप में और कवि के रूप में| लोक नायक के रूप में उन्होंने समस्त उत्तर भारत में सामाजिक चेतना जगाकर जन जागृति का मंत्र फूंका और अन्याय तथा अत्याचार के विरुद्ध जनता को संगठित किया|
गुरु नानक व्यक्ति नहीं थे| संस्था शब्द भी उनके संपूर्ण कृतित्व का अर्थ वह नहीं कर सकता है--वे एक समग्र देशकाल की चेतना के प्रतीक थे|भारत के जनजीवन तथा संस्कृति को नया मोड़ देने में गुरु नानक को जो अभूतपूर्व सफलता मिली, वह इनके व्यक्तित्व की महानता की परिचायक है| इनके मानवतावादी विचारों ने विभिन्न धर्मों एवं संप्रदायों की भेदक रेखा को समाप्त कर दिया| इन्होंने राम, रहीम, अल्लाह, हरि आदि अनेक नामों की अपेक्षा एक परम सत्ता की ओर संकेत किया और उसे ही सर्वशक्तिमान एवं सर्वज्ञ के रूप में प्रतिष्ठित किया| इन्होंने एकेश्वरवाद की दृढ़ स्थापना करके बहुदेववाद एवं अवतारवाद के महत्त्व को सदा सर्वदा के लिए समाप्त कर दिया| भारतीय समाज को खुशहाल बनाने के लिए उन्होंने हिंदुओं, मुसलमानों, बौद्धों, नाथों आदि को उनके धर्म ग्रंथ अनुसार उपदेश देकर उन्हें एक दूसरे के प्रति उदार एवं सहिष्णु बनने के लिए अनुप्रेरित किया| इन्होंने जाणहू जोति न पूछहु जाती आगै जाति न हे'- कहकर समस्त मानवता को एक सूत्र में पिरोने का सफल प्रयत्न किया|उन्होंने (गुरु नानक) श्रुति-मार्ग को ग्रहण न कर ज्योति-मार्ग का ही अवलम्बन किया। श्रुति-मार्ग वेद-शास्त्र- प्रतिपादित ज्ञान-कर्म-समन्वित साधना का मार्ग था। इन्होंने ज्ञान और कर्म के समन्वय के स्थान पर ज्ञान और भक्ति (प्रेम) का समन्वय कर परम तत्त्व के साक्षात्कार का ज्योति मार्ग स्वीकार किया। इस आध्यात्मिक साधना के फलस्वरूप, गुरु नानक की वाणी में अनायास ही दो ऐसे तत्त्वों का समावेश हो गया जिन्होंने मध्ययुगीन समाज और संस्कृति को ही समृद्ध नहीं किया वरन् जो आधुनिक जीवन-दर्शन के भी अभिन्न अंग हैं। ये दो तत्व हैं- मानववाद और सर्व-धर्म-समभाव। शास्त्रनिष्ठ धार्मिक कल्पनाओं द्वारा प्रतिष्ठित अति- मानववाद के स्थान पर जन-जीवन से सहज संपृक्त संत मत ने वर्ग, वर्ण, धर्म, जाति, पांडित्य और ऐश्वर्य से मुक्त, शुद्ध मानव के प्रति आत्मीय भाव का प्रचार किया। इनका तर्क सीधा था- जो ईश्वर का ‘वन्दा’ है वह संत का प्यारा है ।...सर्व-धर्म- समभाव की धारणा भी गुरु नानक देव की प्रगतिशील एवं आधुनिक विचार पद्धति का महत्वपूर्ण अंग है अद्वैत कल्पना के भीतर से एकेश्वर-सिद्धान्त का विकास कर, निर्गुण ब्रह्म के स्तर पर ईश्वर की एकता की प्रतिष्ठा कर उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम धर्मों में समन्वय किया और उधर कर्म और ज्ञान के विरोध का भक्ति के धरातल पर निराकरण किया। इस प्रकार धर्म और संस्कृति के क्षेत्र में एकता और साम्य का प्रचार कर गुरु नानक देव ने अनेक वर्ण-जाति-धर्म के महासंगम इस विशाल देश की सबसे प्रमुख और जटिल समस्या का स्थायी समाधान प्रस्तुत किया जिसका महत्त्व आज भी अक्षुण्ण है|
Keywords:
शब्द संकेत : सामाजिक-सांस्कृतिक समरसता, मानवतावाद, जन जागृति, सर्व-धर्म-समभाव, शांति-सेतु, संगत,पंगत, लंगर, दया, परोपकार, सहिष्णुता, प्रेम, जीवन मूल्यों, एकेश्वरवाद|
Cite Article:
"Sant Siromani Gurunanak dev Ji Ki Samajik Samarsata", International Journal of Novel Research and Development (www.ijnrd.org), ISSN:2456-4184, Vol.8, Issue 2, page no.c289-c295, February-2023, Available :http://www.ijnrd.org/papers/IJNRD2302236.pdf
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ISSN:
2456-4184 | IMPACT FACTOR: 8.76 Calculated By Google Scholar| ESTD YEAR: 2016
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